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बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

तेरे जाने के बाद




















धुंधली से यादो का दास्ता!
वो काँटों से भरा रास्ता !
मेरा घुट घुट कर जीना !
और आंसुओ को पीना !
तेरे जाने के बाद !

हर चेहरे में तेरे चहरे को पाना !
यादो में तेरी खुद को भूल जाना !!
फूलो का बगिया में न मुस्कुराना !!
पंछी का आसमा में न चहचहाना !!
तेरे जाने के बाद !

मेरी साँसों का थम जाना ,
पर यादो का न रुक पाना !
सावन के मौसम में न आना !!
हर आहट में तुझे न पाना !!
मेरे जाने के बाद !

अब तन्हाई भी सवाल करती है !
करोगे कब जुदा बार बार कहती है !
हवांए भी हर वक्त मुझ से दूर रहती हैं !
फिर होगा सन्देश कोई यही कहती हैं !!
तेरे जाने के बाद !

मेरी माँ






















तुझे कितना चाहता हूँ तू नहीं जानती है
माँ तुम हो इस दुनिया में सबसे न्यारी और दुलारी
तुम हो माँ इस जहा में सबसे प्यारी

माँ कितना चाहता हूँ तुम्हे बता नहीं सकता
तेरे प्यार का बदला मैं कभी नहीं चूका सकता

देख के तुमको मिलता है सुकून माँ
आज भी सोना चाहता हैं तेरे गोद में माँ
वो बचपन में तेरा प्यार माँ
मुझे आज भी याद है

तेरे आचल के पीछे छुपना
दूध न पीने के लिए नखरे दिखाना
वो तुम्हारा डाटना और हलके गल में चपत लगाना
और माँ तेरा खुद ही वो सहम जाना

तेरे याद आती है माँ तेरे पास आने को जी चाहता है
तेरे गोद में सोने को जी चाहता है

मैं तुम्हे बहुत चाहता हूँ मेरी   माँ !!

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

खुद को खोकर क्या पाना..!!

इस ज़माने के साथ , चलना है माना..        
शराफत भी हो , शोहरत भी कमाना..
इस तेज़ रफ़्तार में , खुद को ना खोना..
लगे ना कभी की-
" खुद को खोकर क्या पाना"..!!

सचमुच बड़ी तेज़ , भाग रही जिंदगी ..
थोडा मुश्किल है इसको , ठीक समझ पाना..
पर सब्र ही सबसे वाज़िब दावा है..
रुतबा तो ठीक , दिल जीत लाना..                                 

मीठे लफ्जों से जीतो , मधुर वाणी रखो..
पर किसी का दिल , तुम नहीं दुखाना..
अकड़ कर जो जीता , तो क्या जीत उसकी..
सर झुकाकर तुम सारे , गढ़ जीत लाना..

दिल साफ़ रखना , सबको अपनाना..
बड़े और छोटे में भेद ना लाना..
चोरी ना  करना , ना किसी से छिपाना..
मुश्किल है खुदा की , नज़रों से बच पाना..


ना खुद कभी रुकना , ना किसी को सताना..                        
ना खुद कभी थमना , ना किसी को थकाना..
आज का रौब है , कल रहे ना रहे यह..

हर जिंदगी का पहलु , हंस के अपनाना..



माना 'माया' की महिमा , सबसे अलग है..                  

 मगर मोह न इसका इतना बढ़ाना..
संभालना ज़रा तुम , खुद के लिए ही ..
लगे ना कभी की..
" खुद को खोकर क्या पाना"..!

खो जाऊ अगर तो रोना नहीं..!!

कभी याद हमारी आये तो..

पलकें अपनी तुम भिगोना नहीं..
कभी दिल भी दुःख सा जाये तो..
यादों से दूर तुम होना नहीं..

यह बात पुरानी सच ही है..           
खो जाऊ अगर तो रोना नहीं..    

यह मिलना बिछड़ना जीवन है..
सपनो में सही गुम होना नहीं..
आंसू अपने तुम चुन लेना..
इन्हें हम पर तुम खोना नहीं..

जब याद हमारी आये तो..
सह लेना मगर तुम रोना नहीं..       

तेरी ख़ुशी में है मेरी ख़ुशी..
तेरे अश्को की वजह हमें होना नहीं..  
हम तुझसे रूठ नहीं सकते..
मेरी यादों से दूर कभी होना नहीं..

हु आज अभी , कल ना भी हो..
मुंदु आंखे तो रोना नहीं..!!

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

तुम कब लौटोगे..


 ना तमन्ना है जीने की ना मरने
का हौसला बचा है,
शायद मेरे नसीब ने ही ये चक्रव्यूह रचा है।
रात आती तो है पर जाती कभी नहीँ,
जैसे बना लिया है उसने
बसेरा मेरी जिंदगी को ही।
उदासीयाँ बैठी रहती हैं मेरे फूलों वाले सफेद
तकीए के पास,
बिस्तर का दहिना हिस्सा आज भी पाले है
तुम्हारे आने की आस।
घडी भी टिक-टिक
नहीं करती सुईयाँ सी चुभोती है कानों में,
रूह का खालीपन घसीट ले जाता है गुजरे
जमानों में।
बडे से कमरे की छोटी खिडकी कि चौखट
भी जर्जर हो गई है मेरी जिंदगी के जैसे,
मेज पर पडा खाली फ्रेम कुछ
कहना तो चाहता है पर कहे भी तो कैसे?
फटे होंठ हिलते भी तो हैं कराहें
ही निकलती हैं,
घर के हर कोने मे बस
तन्हाईयाँ ही पलती हैं।
अलमारी में कपडों के नीचे पडा मुडा हुआ
कागज थोडा सुकूँ पहूँचाता है,
तो कभी किताब में रखा सूखा गुलाब आँखे
भीगो जाता है।
प्यार सिर्फ प्यार ना रह कर बंदगी बन
गया है,
और ईंतजार भी ईंतजार ना रह कर
जिंदगी बन गया है।
तुम कब लौटोगे.. तुम कब लौटोगे.. या फिर
शायद.. कभी भी नहीं??????

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

कुछ नहीं एक सपना था


जिंदगी की राहों में अकेला ही चला जा रहा था मैं, मन में उमंग तो मेरे भी थी ही की काश मेरे पास भी कोई पतंग होती, आखिर मैं भी बच्चा था पतंग को लेकर मेरे भी सपने थे, मगर कहते है न सपने तो सपने होते है सपने कहाँ अपने होते है वैसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ।

जिंदगी की यूँ ही कटती शाम में एक दिन आसमान में एक पतंग नजर आई, पहली ही नजर में वो पतंग इतनी भा गयी की मेरे बावरे मन ने उस पतंग को पाने की सोच ली, बेरंग सी जिंदगी में उस पतंग को उड़ते देख ऐसा लगा जैसे इससे ज्यादा हसीं और रंगीन जिंदगी तो कभी भी नहीं हो सकती, जैसे जैसे हवा के साथ वो पतंग मेरी और आती ऐसा लगता आज तो ये मेरी होकर रहेगी,
मेरे मन ने उस पतंग को पाने के लिए खुले आसमान के नीचे भरी धुप में दोड़ लगाने की ठान ली, सोच लिया कुछ भी हो इसे पाने के eलिए कुछ भी करना मंजूर, ये भी याद नहीं रहा की वो पतंग अभी भी आसमान में उड़ रही है उसकी डोर अभी भी किसी के हाथ में हो सकती है।

और वही हुआ जहाँ मैं अकेला चल रहा था उस पतंग ने कुछ देर मेरी वीरान जिंदगी की शाम में रंग भरे और फिर उसकी डोर जिसके हाथ में थी उसने उसे अपनी और वापस खींच लिया ना पतंग का कुछ बिगड़ा जिसके हाथ में डोर थी उसका, किसी का कुछ हुआ तो उसका जिसने उस पतंग के साथ दोड़ने की आदत दाल ली क्यूंकि दोड़ते-२ वो इतना आगे आ गया कि सब पीछे रह गए जो कभी उसके साथ चलने तैयार थे....


कुछ नहीं एक सपना था या थी कोई हकीक़त..

4 दिन में जिंदगी से प्यार करने की आदत डलवा दी उसने.............

तुम जा रही थी



















तुम जा रही थी..
स्टेशन के प्लेटफोर्म के एक कोने में खड़ा,
मैं बस तुम्हे देखे जा रहा था..
जिंदगी फिसली जा रही थी आँखों के सामने मेरे..
बेबस खड़ा मैं,
बस  तुम्हे देखे जा रहा था..
एक रुमाल से अपने आँखों के आंसू पोछ रहा था..
दिल  में एक अजीब सा दर्द उठा उस वक्त..
तुम्हारा वो खिला चेहरा, 
उस दिन खिला खिला मुझे नहीं लग रहा था..
उदासी साफ़ झलक रही थी चेहरे पे तुम्हारी..
और बेबस खड़ा मैं, एक कोने में, बस तुम्हें देखे जा रहा था...


एक शाम पहले जब तुमसे आखरी बार मिलके,
घर वापस आया था..
एक अजब सी बेचनी थी..
तुमने जो ग्रीटिंग कार्ड और वो एक फूल दिया था,
उसे मैं बस रात भर निहारे जा रहा था..
कुछ बातों में गुमसुम पूरी रात जागा रहा मैं...

वो शाम कितनी छोटी थी,
एक पल में ही गुज़र गयी..
समय तो मनो,
पंख लगा के उड़ रहा था उस शाम..


उसी शाम चलते चलते,
तुमने मेरा हाथ थामके कहा था,
की मैं वापस आउंगी..
ग्रीटिंग कार्ड के पन्ने के एक कोने पे भी,
यही लिखा था तुमने..
वो कार्ड आज भी मेरे पास है, साथ है..

उस दिन भी जब तुम जा रही थी,
अच्छा  तो बिलकुल नहीं लग रहा था..
एक पल सोचा की रोक लूँ आके तुम्हें
हाथ थाम अपने साथ कहीं ले चलूँ,
इस ज़माने से कहीं बहुत दूर..
पर मैं कमज़ोर था..ये कर न सका..

मेरे आंसूं

समेट लिया है दामन में मैंने तेरी यादों को
फिर भी बरस जाते हैं आँखों से मेरे आंसूं

ख्यालों में दबे पाँव जब आती हो तुम
तब बड़े प्यार से मुस्कुराते हैं मेरे आंसूं

दूरियों का अहसास जब करता है मन को पागल
कसम से,जी भर रुलाते हैं मेरे आंसूं

दिल की बातें तुम तक पहुचआऊं कैसे
अक्सर कागज़ पे टपक जाते हैं मेरे आंसूं..

तुम

प्यार मेरा  

याद करके प्यार मेरा,
जो कभी दिल तेरा, भर आये,
देखो आँख कहीं भर आये नहीं...

आँखों की बारिशें देखो 
अच्छी नहीं होती..,
उदास रहने से , सुना है मैंने,..
चेहरा ख़राब होता है...


तन्हा सा

तन्हा-तन्हा सा है शमा,
शाम तन्हा, आसमान तन्हा..
सड़को पे फिर रहा मैं तन्हा
रात जो हुई तो,
बेरहम तेरी यादें,
फिर से आ गयी मुझे सताने...

लोगों से अब क्यों एक शिकायत सी हो गयी..
तन्हाई अब क्यों अपनी सी हो गयी..
पूछ चुके हैं कई लोग,
क्यों आँखों में तुम्हारी नमी रहने लगी?
इसका क्या जवाब दूँ,
सोच रहा हूँ बैठे बैठे मैं तन्हा..

तुम होते तो अच्छा होता

उसी मोड़ पे आ रुखा था मैं कुछ दिन पहले
जहाँ हुई थी हमारी आखरी मुलाकात..
 मुकुन्दगढ़  के जिन सड़को पे,
हम घूमते रहते थे दीवानों की तरह
उन्ही सड़को से गुज़रा इस बार
 कितनी बातें याद आयीं..
लगा एक पल ऐसा की तुम आ ही जाओ शायद,
अचानक से मेरे सामने..

तुमसे दूर हुए एक ज़माना हो गया,
फिर भी हर पल तुम्हारा तसव्वुर मेरे साथ है 
याद है वो भी, जब तुम बुलाते मुझे मुलाकात के लिए..
और मेरे देर से आने पे,
मेरी हर बातों का जवाब देते तुम इनकार में..
मैं तुम्हें मनाता फिर बड़े ही प्यार से,
तुम्हारी उन आँखों में,
न जाने कितने लम्हे बीतें मेरे..
अब उन्ही लम्हों को याद करता हूँ..

जब  से गए हो तुम,
दिल की ख़ुशी भी गयी..
मुस्कुराता हूँ, हँसता हूँ
लेकिन मत पूछो दिल की हालात है क्या..

जो है लिखा किस्मत में वही होगा,
हम  चाहे कितनी भी खवाहिशें कर लें,
लेकिन तुम होते मेरी किस्मत में 
तो अच्छा होता..
तुम होते तो अच्छा होता

तुम बहुत याद आती हो

आज फिर उस पन्ने के तरफ धयान गया,
लिखा था तुमने जिसपे,
फिर मिलेंगे....
सहेज के रखा है अब तक मैंने उस पन्ने को...
की बस एक वही तो है जिसके वजह से,
उम्मीद अब भी है मुझे, तुम वापस आओगे....

उसी पन्ने के एक कोने पे ये भी लिखा था तुमने..
हमेशा मुस्कुराते रहना,हर पल मैं साथ रहूंगी..
आज भी मुश्किल दिनों में,
वो बातें लिखी हुई ,
मेरे चेहरे पे मुस्कान दे जाती है....
तुम बहुत याद आती हो...

ज़िंदगी जियो अपने अंदाज़ में...

हमने उदासी को अपनी आदत कहना नहीं सीखा।

गुमसुम किसी भी हाल में रहना नहीं सीखा।।


बदले हैं हमने हरदम दरियाओं के रुख़,

दरिया के साथ हमने बहना नहीं सीखा।।

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

बचपन न फंस जाए इंटरनेट के जाल में

कंप्यूटर का इस्तेमाल समय की बर्बादी नहीं है, लेकिन बच्चों को इसकी लत से बचाना मां-बाप की जिम्मेदारी है। उन्हें इस बात का ख्याल रखना है कि बच्चे कंप्यूटर के चक्कर में बर्बाद न हो जाएं। आइए इस मुश्किल को सुलझाने की टिप्स पर गौर करें

जब गुड़गांव में रहने वाले 13 साल के प्रणय सहगल के पैरेंट्स ने गौर किया कि उनका बेटा दोस्तों की तुलना में लैपटॉप के साथ ज्यादा वक्त बिता रहा है तो उन्हें थोड़ी चिंता जरूर हुई। लेकिन, खतरे की घंटी तब बजी, जब उन्होंने देखा कि देर रात लैपटॉप के सामने बैठा उनका बेटा गेम्स खेल रहा है। मुंबई में एचआर एक्जीक्यूटिव आकांक्षा सिन्हा यह देखकर हैरान हुईं कि 11 साल की बेटी दीया फेसबुक, चैटिंग या फिर फार्म्सविले और माफिया वार्स जैसे गेम्स खेलने में घंटों बिता रही है। खुशामद करने और डांटने या डराने के बाद भी वह अपनी बेटी को कंप्यूटर से दूर नहीं कर सकीं। वह भी तब, जबकि उनकी बेटी की उम्र इतनी नहीं थी कि वह सोशल नेटवर्किग साइट्स पर जा सके।

सारी कोशिशें नाकाम होने पर प्रणय और दीया के पैरेंट्स उन्हें चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट के पास ले गए। उन्हें तुरंत सारी परेशानी समझ में आ गई। दोनों बच्चे आईएडी यानी इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर से पीड़ित थे। यह तेजी से उभरती बीमारी है, जो भारत में बड़ी संख्या में बच्चों को अपनी चपेट में ले रही है। कुछ समय पहले 10 जिलों में कराए गए एसोचैम के सर्वे में पता लगा कि 8 से 18 साल की उम्र के करीब 55 फीसदी बच्चे रोजाना पांच घंटे से भी ज्यादा समयकंप्यूटर के सामने बैठकर बिता रहे हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे या तो फेसबुक जैसी किसी सोशल नेटवर्किग साइट से चिपके रहते हैं या फिर यूट्यूब पर वीडियो देखते रहते हैं। टैबलेट, गेमिंग कन्सोल्स और स्मार्टफोन से उन्हें कहीं भी, कभी भी अनलिमिटेड इंटरनेट एक्सेस मिल जाती है। विमहांस हॉस्पिटल, दिल्ली में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. पुलकित शर्मा कहते हैं, ‘जब टीवी देखने या दोस्तों से मिलने की तुलना में कंप्यूटर या टैबलेट को प्राथमिकता मिलने लगे, तब यह समझ लेना चाहिए कि बच्चे को इंटरनेट की लत लग गई है।’ लेकिन, उससे भी बड़ी चुनौती यह है कि कंप्यूटर की लत छुड़ाएं। उनके मुताबिक, बच्चे आमतौर पर एकदूसरे की फेसबुक वॉल पर कुछ लिखते हैं या फिर पिक्चर शेयर करते हैं। समस्या जब बहुत बढ़ जाए, जैसा कि प्रणय और दीया के मामले में है, तभी चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट की जरूरत पड़ सकती है। लेकिन, ऐसी स्थिति आए, उससे पहले ही पैरेंट्स बहुत कुछ कर सकते हैं। सबसे पहले, बच्चे के लिए कंप्यूटर के सामने बैठने का समय तय क रें, जैसे एक दिन में एक घंटा। हालांकि, यह कहना आसान है, पर करना मुश्किल। यह लगभग असंभव है कि हर समय अपने बच्चे पर नजर रखी जा सके और जिन घरों में वर्किग पैरेंट्स होते हैं, वहां आमतौर पर एक से ज्यादा कंप्यूटर या लैपटॉप होते हैं। इसलिए एक्सेस आसान है। इसके अलावा, बच्चों को पता होता है कि मम्मीपापा से अपनी बात कैसे मनवानी है। वे कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं। अच्छी बात यह है कि अब ऐसी कंप्यूटर एप्लिकेशन आ गई हैं, जो कंप्यूटर पर काम करने की ‘समय सीमा’ तय करती हैं। आईपैड या आईफोन पर समय सीमा तय करने के लिए आप उसमें ऐपल आईट्यून्स स्टोर से ‘गेम्स टाइम लिमिट’ डाउनलोड कर सकते हैं। इस ऐप के जरिए समय सीमा तय की जा सकती है। जैसे ही समय सीमा खत्म होगी, अलार्म बजना शुरू हो जाएगा। उसे केवल पास कोड के जरिए ही बंद किया जा सकता है। किसी भी हालत में बच्चे को पासकोड न बताएं। यह ध्यान रखिए कि यह फ्री ऐप नहीं है। इसके लिए करीब 60 रुपए खर्च करने पड़ते हैं।

पैरेंट्स अपने कंप्यूटर के लिए पासवर्ड भी सेट कर सकते हैं। अगर बच्च बड़ा है, तो इसका बहुत फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि उसे अपने स्कूल के काम के लिए इंटरनेट एक्सेस करना होता है। नोएडा के एक स्कूल से जुड़ी काउंसलर पूजा मखीजा कहती हैं, ‘ऐसा नहीं है कि इंटरनेट एक्सेस, समय की बर्बादी है। बच्चे वहां बहुत कुछ सीख सकते हैं। यह पैरेंट्स पर निर्भर करता है कि वे यह सुनिश्चित करें कि बच्चे जो कुछ सर्फ करें, उसका उन्हें फायदा भी मिले।’

इसके अलावा और भी कई प्रोग्राम हैं। मसलन, मैथलैंडर्स (मैथलैंडर्स डॉट कॉम) बच्चे का कंप्यूटर एक्सेस करने का टाइम तय कर सकता है। इतना ही नहीं, आप भी वही कर सकते हैं जो दिल्ली में रहने वाले विकास भटनागर ने किया। भटनागर कहते हैं, ‘मेरे बेटे के दोस्त वीकेंड में आते हैं और तीन-चार घंटे कंप्यूटर पर मौजमस्ती करते हैं। मुझे इसमें कोई बुराई नहीं नजर आती।’ इसके अलावा अपने चौदह साल के बेटे को वह रोज आधे घंटे कंप्यूटर पर बैठने की इजाजत भी देते हैं। उस दौरान

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