welcome

शनिवार, 7 जून 2014

बस अब और नही....!!!

साल बदलते है....तारीखे बदलती है..                              
घड़ी की सुइयों की तरह,
कुछ भी ठहरता नही है.....
हर साल की तरह दिवाली आती है होली आती है,
न दीयों की रौशनी ही ठहरती है...
न ही होली का कोई रंग ही चढ़ता है...मेरी जिन्दगी में...

हर बार ख्वाब टूटते है उम्मीदे टूटती है....
हर बार सम्हलता हूँ और.....
फिर टूट कर बिखरता हूँ मैं....
हर बार ढूंढ़ कर लाता हूँ खुद को,
और हर बार भीड़ में खो जाता हूँ...
खुद के ही सवालो में उलझ कर रह जाता हूँ ......

सफ़र पर चल
ता हूँ सबके साथ,
सभी मुझसे आगे निकल जाते है,
और मैं न जाने किसके
इन्तजार में पीछे रह जा
ता हूँ......

डायरी के खाली पन्नो की तरह,
मैं भी खाली हो चुकी हूँ....
न शब्द ही मिलते है मुझे,
न ही अर्थ समझ पाती हूँ.....अपने इस खालीपन का...

थक चुकी हूँ....
इन शब्दों से खुद को बहलाते-बहलाते,
थक चुकी हूँ....
खुद को समझाते-समझाते,
बस अब और नही....

बस अब और नही......
ठहर जाना चाहता हूँ.....
बिखर जाना चाहता हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहता हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह.... 
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहता हूँ......!

कुछ देर और ठहरो साथ मेरे...!!!

कुछ देर और ठहरो साथ मेरे...              
अरसे बाद कुछ लिख रहा हूँ मैं....!

कुछ दूर और चलो साथ मेरे,
सदियों से मंजिलो की तलाश में...
भटक रहा हूँ मैं....!

कुछ पल और थाम लो हाथ मेरा,
कि फिर एक बार गिर कर..
सम्हाल रहा हूँ मैं.......!

कुछ और ख्वाब देख लो तुम साथ मेरे,
कि अरसे से एक ख्वाब के लिए जाग रहा हूँ मैं.....!

कुछ दूर और समेट लो मेरे वजूद को,
कि फिर प्यार में.....
टूट कर बिखर रहा हूँ मैं...!!!

Follow Us