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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

बचपन न फंस जाए इंटरनेट के जाल में

कंप्यूटर का इस्तेमाल समय की बर्बादी नहीं है, लेकिन बच्चों को इसकी लत से बचाना मां-बाप की जिम्मेदारी है। उन्हें इस बात का ख्याल रखना है कि बच्चे कंप्यूटर के चक्कर में बर्बाद न हो जाएं। आइए इस मुश्किल को सुलझाने की टिप्स पर गौर करें

जब गुड़गांव में रहने वाले 13 साल के प्रणय सहगल के पैरेंट्स ने गौर किया कि उनका बेटा दोस्तों की तुलना में लैपटॉप के साथ ज्यादा वक्त बिता रहा है तो उन्हें थोड़ी चिंता जरूर हुई। लेकिन, खतरे की घंटी तब बजी, जब उन्होंने देखा कि देर रात लैपटॉप के सामने बैठा उनका बेटा गेम्स खेल रहा है। मुंबई में एचआर एक्जीक्यूटिव आकांक्षा सिन्हा यह देखकर हैरान हुईं कि 11 साल की बेटी दीया फेसबुक, चैटिंग या फिर फार्म्सविले और माफिया वार्स जैसे गेम्स खेलने में घंटों बिता रही है। खुशामद करने और डांटने या डराने के बाद भी वह अपनी बेटी को कंप्यूटर से दूर नहीं कर सकीं। वह भी तब, जबकि उनकी बेटी की उम्र इतनी नहीं थी कि वह सोशल नेटवर्किग साइट्स पर जा सके।

सारी कोशिशें नाकाम होने पर प्रणय और दीया के पैरेंट्स उन्हें चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट के पास ले गए। उन्हें तुरंत सारी परेशानी समझ में आ गई। दोनों बच्चे आईएडी यानी इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर से पीड़ित थे। यह तेजी से उभरती बीमारी है, जो भारत में बड़ी संख्या में बच्चों को अपनी चपेट में ले रही है। कुछ समय पहले 10 जिलों में कराए गए एसोचैम के सर्वे में पता लगा कि 8 से 18 साल की उम्र के करीब 55 फीसदी बच्चे रोजाना पांच घंटे से भी ज्यादा समयकंप्यूटर के सामने बैठकर बिता रहे हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे या तो फेसबुक जैसी किसी सोशल नेटवर्किग साइट से चिपके रहते हैं या फिर यूट्यूब पर वीडियो देखते रहते हैं। टैबलेट, गेमिंग कन्सोल्स और स्मार्टफोन से उन्हें कहीं भी, कभी भी अनलिमिटेड इंटरनेट एक्सेस मिल जाती है। विमहांस हॉस्पिटल, दिल्ली में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. पुलकित शर्मा कहते हैं, ‘जब टीवी देखने या दोस्तों से मिलने की तुलना में कंप्यूटर या टैबलेट को प्राथमिकता मिलने लगे, तब यह समझ लेना चाहिए कि बच्चे को इंटरनेट की लत लग गई है।’ लेकिन, उससे भी बड़ी चुनौती यह है कि कंप्यूटर की लत छुड़ाएं। उनके मुताबिक, बच्चे आमतौर पर एकदूसरे की फेसबुक वॉल पर कुछ लिखते हैं या फिर पिक्चर शेयर करते हैं। समस्या जब बहुत बढ़ जाए, जैसा कि प्रणय और दीया के मामले में है, तभी चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट की जरूरत पड़ सकती है। लेकिन, ऐसी स्थिति आए, उससे पहले ही पैरेंट्स बहुत कुछ कर सकते हैं। सबसे पहले, बच्चे के लिए कंप्यूटर के सामने बैठने का समय तय क रें, जैसे एक दिन में एक घंटा। हालांकि, यह कहना आसान है, पर करना मुश्किल। यह लगभग असंभव है कि हर समय अपने बच्चे पर नजर रखी जा सके और जिन घरों में वर्किग पैरेंट्स होते हैं, वहां आमतौर पर एक से ज्यादा कंप्यूटर या लैपटॉप होते हैं। इसलिए एक्सेस आसान है। इसके अलावा, बच्चों को पता होता है कि मम्मीपापा से अपनी बात कैसे मनवानी है। वे कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं। अच्छी बात यह है कि अब ऐसी कंप्यूटर एप्लिकेशन आ गई हैं, जो कंप्यूटर पर काम करने की ‘समय सीमा’ तय करती हैं। आईपैड या आईफोन पर समय सीमा तय करने के लिए आप उसमें ऐपल आईट्यून्स स्टोर से ‘गेम्स टाइम लिमिट’ डाउनलोड कर सकते हैं। इस ऐप के जरिए समय सीमा तय की जा सकती है। जैसे ही समय सीमा खत्म होगी, अलार्म बजना शुरू हो जाएगा। उसे केवल पास कोड के जरिए ही बंद किया जा सकता है। किसी भी हालत में बच्चे को पासकोड न बताएं। यह ध्यान रखिए कि यह फ्री ऐप नहीं है। इसके लिए करीब 60 रुपए खर्च करने पड़ते हैं।

पैरेंट्स अपने कंप्यूटर के लिए पासवर्ड भी सेट कर सकते हैं। अगर बच्च बड़ा है, तो इसका बहुत फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि उसे अपने स्कूल के काम के लिए इंटरनेट एक्सेस करना होता है। नोएडा के एक स्कूल से जुड़ी काउंसलर पूजा मखीजा कहती हैं, ‘ऐसा नहीं है कि इंटरनेट एक्सेस, समय की बर्बादी है। बच्चे वहां बहुत कुछ सीख सकते हैं। यह पैरेंट्स पर निर्भर करता है कि वे यह सुनिश्चित करें कि बच्चे जो कुछ सर्फ करें, उसका उन्हें फायदा भी मिले।’

इसके अलावा और भी कई प्रोग्राम हैं। मसलन, मैथलैंडर्स (मैथलैंडर्स डॉट कॉम) बच्चे का कंप्यूटर एक्सेस करने का टाइम तय कर सकता है। इतना ही नहीं, आप भी वही कर सकते हैं जो दिल्ली में रहने वाले विकास भटनागर ने किया। भटनागर कहते हैं, ‘मेरे बेटे के दोस्त वीकेंड में आते हैं और तीन-चार घंटे कंप्यूटर पर मौजमस्ती करते हैं। मुझे इसमें कोई बुराई नहीं नजर आती।’ इसके अलावा अपने चौदह साल के बेटे को वह रोज आधे घंटे कंप्यूटर पर बैठने की इजाजत भी देते हैं। उस दौरान वह नजर रखते हैं कि उनका बेटा इंटरनेट पर क्या सर्फ कर रहा है।

इसके लिए भी बहुत से यूजर फ्रेंडली ऐप्स मौजूद हैं। माइनर मॉनिटर एक और उपयोगी ऐप है, जो फेसबुक एक्टीविटीज को ट्रैक करता है और स्टेटस अपडेट, फोटो अपलोड्स, वीडियो, मैसेजेज और यहां तक कि एक खास समय में कितने फ्रेंड ऐड हुए, इसका भी हिसाब रखता है। यह फ्री ऐप है। आपको बच्चे के फेसबुक एड्रेस और पासवर्ड के जरिए माइनरमॉनिटर डॉट कॉम पर रजिस्टर करना होगा।

तरीके और भी हैं, सिर्फ हमें यह तय करना है कि बच्च रियलिटी की कीमत पर वचरुअल वर्ल्ड में अपनी जिंदगी जाया न करे।
(पहचान छुपाने के लिए बच्चों और उनके पैरेंट्स के नाम बदल दिए गए हैं)


कैसे जानें बच्चे को कंप्यूटर की आदत पड़ गई है

कंप्यूटर के सामने नहीं होने पर उसे बेचैनी महसूस होती है।
तमाम दूसरी चीजों में रुचि खत्म हो गई है, जैसे दोस्तों के साथ खेलना, किताबें पढ़ना या टीवी देखना।
देर रात तक वचरुअल गेम्स खेलता है या सोशल नेटवर्किग साइट्स पर होता है।
रीयल लाइफ फ्रेंड की तुलना में वचरुअल फ्रेंड्स ज्यादा हैं।
कंप्यूटर से दूर होने पर एबसेंट माइंडेड नजर आता है।
ऑनलाइन होने के चक्कर में स्कूल वर्क या जरूरी असाइनमेंट्स की अनदेखी करता है।

कंप्यूटर के सामने डटे रहने की आदत कैसे छुड़ाएं

यह जानने की कोशिश कीजिए कि वह कंप्यूटर के सामने इतना वक्त क्यों बिता रहा है। क्या वह किसी समस्या से भाग रहा है?
कंप्यूटर को बच्चे के कमरे से बाहर निकालिए। आदर्श स्थिति तो यह है कि घर में उसे किसी कॉमन प्लेस पर रखा जाए।
बच्चे के लिए रोल मॉडल बनिए और अपने खुद के कंप्यूटर टाइम को समय सीमा में बांधिए।
बच्चे के लिए कंप्यूटर के सामने बैठने का समय तय कीजिए। इसमें किसी तरह का समझौता न करें।
बच्चे के साथ खेलिए, पार्क या लाइब्रेरी जाइए। उसके दोस्तों के साथ एक्टिविटी ऑर्गेनाइज कीजिए।

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