यूँ तो लिखने की शुरुआत कविता से ही की थी । पर लगता है कि कविता लिखी
नहीं जाती बल्कि अपने आप को लिखाती है । जब भाव ह्रुदय मे नहीं समाते तो
पन्नों पे बिखर जाते हैं । अब ऐसा कोई भाव नहीं जिसके अतिरेक को मैं रोक न
पाँऊ, तभी मैं अब कविता नहीं लिख पाता शायद । मैनें अपनी सारी कवितायें या
ग़ज़लें भावातिरेक मे लिखीं, अब चाहे वह हर्ष रहा हो या शोक । बहुत दिनों तक
मैने उन्हें बाँटा भी नहीं । अब जब समय की धूल ने वो यादें धुँधला दी हैं
तो साहस हुआ है कि मैं किसी के सामने रख सकूँ………….मैने जो लिखा था …।
=======================================================================हम नहीं वक्त जो चुपचाप गुज़र जायेंगे,
जब तेरी राह से निकलेंगे, ठहर जायेंगे ।
कभी तो पास कोई आके मुझसे दो बात करे,
ग़र जो तन्हा रहे तो यूँ ही बिखर जायेंगे ।
आँधियों न बुझाओ उसकी यादों के चराग़,
हम इतने स्याह अँधेरों मे किधर जायेंगे।
दर्द जो ढल के अश्क़ मे न गिरे आँखो से,
बनेंगे हर्फ़ औ काग़ज़ पे उतर जायेंगे ।
========================================================================
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें