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मंगलवार, 23 मई 2017

मैने जो लिखा था….

यूँ तो लिखने की शुरुआत कविता से ही की थी । पर लगता है कि कविता लिखी नहीं जाती बल्कि अपने आप को लिखाती है । जब भाव ह्रुदय मे नहीं समाते तो पन्नों पे बिखर जाते हैं । अब ऐसा कोई भाव नहीं जिसके अतिरेक को मैं रोक न पाँऊ, तभी मैं अब कविता नहीं लिख पाता शायद । मैनें अपनी सारी कवितायें या ग़ज़लें भावातिरेक मे लिखीं, अब चाहे वह हर्ष रहा हो या शोक । बहुत दिनों तक मैने उन्हें बाँटा भी नहीं । अब जब समय की धूल ने वो यादें धुँधला दी हैं तो साहस हुआ है कि मैं किसी के सामने रख सकूँ………….मैने जो लिखा था …।

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हम नहीं वक्त जो चुपचाप गुज़र जायेंगे,
जब तेरी राह से निकलेंगे, ठहर जायेंगे ।
कभी तो पास कोई आके मुझसे दो बात करे,
ग़र जो तन्हा रहे तो यूँ ही बिखर जायेंगे ।
आँधियों न बुझाओ उसकी यादों के चराग़,
हम इतने स्याह अँधेरों मे किधर जायेंगे।
दर्द जो ढल के अश्क़ मे न गिरे आँखो से,
बनेंगे हर्फ़ औ काग़ज़ पे उतर जायेंगे ।
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