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मैं जानता हूँ...

मैं जानता हूँ कि धोखा खा नहीं सकते किसी से,
तुम्हें भी जहर अपनों ने ही पिलाया होगा ।।

मैं जानता हूँ कि दुश्मनों में तुम्हारे न हिम्मत थी इतनी,
तुम्हें भी किसी न दोस्त बनकर हराया होगा ।।

मैं जानता हूँ कि बड़े शौक से देखे थे सपने कई तुमने,
तुम्हें भी शायद मुक़द्दर ने सताया होगा ।।

मैं जानता हूँ कि दर्द को सहना तो आदत थी तुम्हारी,
तुम्हें भी शायद खुशी ने रुलाया होगा ।।

मैं जानता हूँ कि नहीं खौफ खाते तुम अंधेरों से,
तुम्हें भी खौफ चिरागों ने दिलाया होगा ।।

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