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शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

खुद को खोकर क्या पाना..!!

इस ज़माने के साथ , चलना है माना..        
शराफत भी हो , शोहरत भी कमाना..
इस तेज़ रफ़्तार में , खुद को ना खोना..
लगे ना कभी की-
" खुद को खोकर क्या पाना"..!!

सचमुच बड़ी तेज़ , भाग रही जिंदगी ..
थोडा मुश्किल है इसको , ठीक समझ पाना..
पर सब्र ही सबसे वाज़िब दावा है..
रुतबा तो ठीक , दिल जीत लाना..                                 

मीठे लफ्जों से जीतो , मधुर वाणी रखो..
पर किसी का दिल , तुम नहीं दुखाना..
अकड़ कर जो जीता , तो क्या जीत उसकी..
सर झुकाकर तुम सारे , गढ़ जीत लाना..

दिल साफ़ रखना , सबको अपनाना..
बड़े और छोटे में भेद ना लाना..
चोरी ना  करना , ना किसी से छिपाना..
मुश्किल है खुदा की , नज़रों से बच पाना..


ना खुद कभी रुकना , ना किसी को सताना..                        
ना खुद कभी थमना , ना किसी को थकाना..
आज का रौब है , कल रहे ना रहे यह..

हर जिंदगी का पहलु , हंस के अपनाना..



माना 'माया' की महिमा , सबसे अलग है..                  

 मगर मोह न इसका इतना बढ़ाना..
संभालना ज़रा तुम , खुद के लिए ही ..
लगे ना कभी की..
" खुद को खोकर क्या पाना"..!

2 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. मिश्रा जी आप हमारे ब्लॉग में पधारे और आपने इसकी प्रशंसा की इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!

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