अब तो सच यह
है कि मैं लिखना चाहता हूं। मैंने बहुत मजे कर लिये । अब मैं जिंदगी से आजिज आ
गया हूं। आगे देखने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं जो भी जिंदगी में
करना चाहता था, उसे कर चुका हूं। तब जिंदगी में घिसटते रहने का क्या मतलब
है? वह भी तब, जब करने को कुछ भी न बचा हो। मुझे तो इस दौर में
एक ही राहत नजर आती है किअपनी पुरानी खुशनुमा यादों में खो जाऊं। यों ही फैज याद आते हैं-
रात दिल में यूं तेरी खोई हुई याद आए।
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए।
जैसे सहराओं में हौले से चले बादे नसीम
जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए।
मैं सोचता हूं कि किसी लाइलाज शख्स का इलाज क्या है? इसका जवाब है: एक लाश जैसे शरीर के लिए अपनी जिंदगी से विदा हो चुकी महबूबाओं को याद करना। शायद!
एक ही राहत नजर आती है किअपनी पुरानी खुशनुमा यादों में खो जाऊं। यों ही फैज याद आते हैं-
रात दिल में यूं तेरी खोई हुई याद आए।
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए।
जैसे सहराओं में हौले से चले बादे नसीम
जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए।
मैं सोचता हूं कि किसी लाइलाज शख्स का इलाज क्या है? इसका जवाब है: एक लाश जैसे शरीर के लिए अपनी जिंदगी से विदा हो चुकी महबूबाओं को याद करना। शायद!
bahut acha...
जवाब देंहटाएंdhanywaad vikram....
हटाएं