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बुधवार, 19 सितंबर 2012

कलम का रहस्य















कलम का रहस्य
वो जानते हैं
जो बांस का टुकडा बन के
किसी अगम्मी फूँक का
इन्तजार करते हैं
तो जो कविता
सिर से पाँव तक 
महज बांसुरी हो जाए 
कलम का रहस्य 
वो जानते हैं 
जो अपने साये से 
मुखातिब होते रहतें हैं 
और तब तक
उसे देखते रहते हैं 
जब तक वो सिकुडता -सिकुड़ता 
महज बिन्दु न हो जाए 
कलम का रहस्य 
वो जानते हैं 
जिनकी कपाल और एडी के बीच 
ऊर्जा की तार बंधी होती है 
जिसपर पक्षी बैठते हैं
नाचते हैं ,गातें हैं 
और एक अजब ही 
नाद पैदा करते हैं

मेरी मजबूरीयां





















मुझको खुशी मिलती है तुमको हंसाने से,
वर्ना मुझे क्या मिलता है युं ही मुस्कराने से।
मैं तो हंस लेता हूं बिन बहाने के,
वो कोइ और होन्गे जो रोते है बहाने से।
गमों मे मुस्करांऊ पर पागल नहीं हूं मैं,
गमों की आदत सी पडी गम ही गम उठाने से।
जब पास थे तुम तो दूर हो गये,
अब पास कैसे आंऊ तुमारे बुलाने से।
तुम तक आये वो राह छोडी मैंने,
अब तो राह भी भूल गया चोट खाने से।
चन्द्र मोहनरखे, हर पल नज़र तुमारी राहों पर,
जाने कब आओ तुम पास मेरे किसी बहाने से।
मुझसे रूठने वालों ये तो सोच लो,
बीत जाये ना ये जिन्दगी रूठने मनाने से।
मुझको खुशी मिलती है तुमको हंसाने से,
वर्ना मुझे क्या मिलता है युं ही मुस्कराने से।

सोमवार, 17 सितंबर 2012

मेरे साथ-साथ चलना


















ज़िन्दगी मेरे साथ-साथ चलना
सुनो ज़िन्दगी, मेरे साथ-साथ चलना
अब तो आओ तुम, और थाम लो मेरा हाथ
लम्बी अकेली राह मेरी है, दे दो अपना साथ
तुम बिन अर्थहीन अस्तित्व है मेरा
जिसका तुम सवेरा हो, ये जीवन ऐसी रात
रूठ जाओ तुम मुझसे हो ऐसा कोई पल ना
ज़िन्दगी मेरे साथ-साथ चलना
गिर पड़ता जब-जब लगती जीवन में ठोकर
ऐसे दुख में पीड़ा से, रह जाता हूँ मैं रोकर
तुम बिन इस पीड़ा को कब तक कहो सहूंगा
जी नहीं सकता मैं तुमको इस तरह से खोकर
यहाँ हर पल गिर-गिर पड़ता मुझे संभलना
ज़िन्दगी मेरे साथ-साथ चलना

ये बेटियां ऐसी ही होती है, ये परियों जैसी ही होती है

























ये  बेटियां कैसी होती है
ये परिया कैसी होती है

ये बात बात पर रोती है
दिल होता है इनका नाजुक सा

ये भोली भाली होती है
बाबा की लाडली होती है

रविवार, 16 सितंबर 2012

बस जीते चले जाओ ..

























चेहरे की हंसी से हर गम छुपाओ,
बहुत कुछ बोलो पर कुछ ना बताओ,
खुद नहीं रूठो कभी पर सबको मनाओ,
ये राज है जिंदगी का, बस जीते चले जाओ .....



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शनिवार, 15 सितंबर 2012

तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है

तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है , जहाँ भी जाऊ ये लगता हैं तेरी महफ़िल है ये आसमान ये बादल ये रास्ते ये हवा हर एक चीज हैं अपनी जगह ठिकाने से कई दिनों से शिकायत नहीं जमाने से ये जिंदगी हैं सफर तू , सफर की मंजिल है!!!

अब मैं अपनी जिंदगी से थक गया हूं

अब तो सच यह है कि मैं लिखना  चाहता हूं। मैंने बहुत मजे कर लिये । अब मैं जिंदगी से आजिज आ गया हूं। आगे देखने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं जो भी जिंदगी में करना चाहता था, उसे कर चुका हूं। तब जिंदगी में घिसटते रहने का क्या मतलब है? वह भी तब, जब करने को कुछ भी न बचा हो। मुझे तो इस दौर में

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